भारत में वैदिक काल से ही दर्शन का प्रादुर्भाव
भारतीय दर्शनों में छः दर्शन प्रमुख हैं
महर्षि गौतम का ‘न्याय’,
कणाद का ‘वैशेषिक’,
कपिल का ‘सांख्य’,
पतंजलि का ‘योग’,
जैमिनि की ‘पूर्व मीमांसा’
महिर्ष बादरायण ‘वेदान्त’ (उत्तर मीमांसा)
ये सब वैदिक दर्शन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि ये वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हैं।
जो दर्शन वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार करते हैं वे आस्तिक कहलाते हैं और
जो स्वीकार नहीं करते उन्हें नास्तिक की संज्ञा दी गई है।
किसी भी दर्शन का आस्तिक या नास्तिक होना परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने पर निर्भर न होकर वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने पर निर्भर है।
यहाँ तक की बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों का भी उद्गम उपनिषदों में है; यद्यपि उन्हें सनातन धर्म नहीं माना जाता है, क्योंकि वे वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करते।
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